Rekha mishra

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -22-Feb-2022

        तुम बदल गए हो
तुम पहले से नहीं बदल गए हों। 
लगता है या तो बिगड़ गए हों, 
या संवर गए हो।
मेरी आँखे धोखा खा ही नहीं सकती, 
के आँखों के देखते देखते बदल गए हों। 
क्यूँ करते हैं लोग झूठे वादे, 
जो उनसे निभाए ना जाए। 
क्यूँ किसी की भावनाओं के 
साथ खेला करते हो, 
जैसे तुम इंसान हों वो भी हैं, 
क्यूँ हर बार ये बात भुला करते हो। 
बेशक इस संसार का नियम ही 
परिवर्तन है पर स्वभाव में 
ये तो मैने नहीं सुना। 
लगता है नए नए अविष्कार 
किया करते हो। 
ये सोच कर भी तकलीफ होती है, 
कि गलती भी हुई तो गलत इंसान 
कि खातिर। 
अब सिर्फ शिकवा ही रह गया। 
क्यूँ तकिये के किनारे रो कर 
गीले किया करते हो। 
जिन्दा हों ये तो सुना है। 
पर एक बुत की तरह 
तो ऐसे क्यूँ जिया करते हो। 
बदलों तुम भी बदले का दौर है, 
अकेले तुम ही नहीं हर 
तरफ यही शोर है, 
किसी को ना दो अपनी 
खुशियो की डोर खिंचने। 
क्यूंकि पतंग भी तुम 
वहाँ माझा भी तुम खुद हो।

   32
7 Comments

Marium

01-Mar-2022 04:31 PM

बहुत खूब

Reply

Punam verma

23-Feb-2022 09:32 AM

Nice

Reply

Rekha mishra

23-Feb-2022 07:37 AM

Thanks to all

Reply